Sunday, November 21, 2010

आंखे बंद थी , और मैं खुद से ही न मिल पाया

आज खुद को एक स्वप्न में गुम हुआ पाया
आंखे बंद थी , और मैं खुद से ही न मिल पाया
सामने नदी थी , डूबने का मन था बनाया
जैसे ही छलांग लगाने की सोचा
दूर पानी में रेत-रेत ही पाया .
पुनह किसी तरह मन को कुछ समय समझाया
खुद को जमीन में दफ़न करने का मन बनाया
जैसे ही जमीन को खोदा
वहा भी ढाई गज जमीन के नीचे पत्थर ही पाया
अचानक में मेरा पैर किसी ठंडी फर्श से टकराया
नींद खुली तो मैं खुद के चारपाई से नीचे पाया
आज खुद को एक स्वप्न में गुम हुआ पाया
आंखे बंद थी , और मैं खुद से ही न मिल पाया !!!!

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