Thursday, September 2, 2010

आज "शायद " फ़िर वही खयाल आता रहा बार बार
सजती रही दुकाने
लगते रहे है बाजार
फ़िर वही आवाज पुकारता रहा है मन
फिर वही चेहरा सँवारता रहा है तन
मन ही है मन का भार
यही है ज़ीवन ज़ीने का सार
...अफसोंसो की रहती हमेशा भरमार
परम्पराओं में अवरोध बनकर न करो प्रतिकार
यहाँ रोज़ सजती है दुकानें
रोज लगता हैं बाजार
आज गोधुलि बेला मे कुछ अनजान मुलाकात हुई
अपने दुख़, उसके दुख़ से आसान लगी
कुछ सोचते,
कुछ बोलते,
कभी चुप रहकर...
सब कुछ कह जाते हैं
आख़ों में कुछ बातें छुप जाने से
पलकें भी वीरान लगी
अपने दुख़, उसके दुख़ से आसान लगी

गोधुली बेला से मुलाकात

आज अचानक गोधुली बेला से मुलाकात हो गयी
उसकी बातें अब कुछ खास न रह गयी
वो परेशान सी लगी , और बार बार कहने ये लगी
अब कोई अकेले में राग नहीं बजता
वो जानवरों का रेला वापस नही लौटता
नुकड़ पर लोगो का मेला नहीं लगता
कोई नन्हा बालक मेरे गोंद में नहीं खेलता
मेरे साये का मेरे से भरोसा न उठ जाये
इन जगमगाती रौशनी में
न जाने कभी मेरा अस्तित्व न ग़ुम जाये
यही सोच कर चुप सी रहने लगी
उसकी बातें अब कुछ खास न रही
आज न जाने क्यों ख्याल आता रहा बार बार
क्यों ज़िन्दगी को पाने में सपने हुए तार तार
वो मोड़
वो चौखट
वो रास्ते
वो मीठी आवाज़
वो पुकारती राहे
चेहरे को देखता आइना
सपने सजोये बेसुध आँखें
खोजती रही वो सपना साकार ...
आज न जाने _ _ _ __
ना जाने ये ज़िन्दगी कभी अनजान सी क्यों लगती है
ना जाने क्यों ये जहाँ विराना लगता है
कभी किसी को ढूढने की चाहत
कभी किसी को पाने की चाहत
कभी कही दूर जाने की चाहत...
कभी खुद को भूल जाने की चाहत
अब रोज की बात लगती है
ना जाने ये ज़िन्दगी _ _ __ __

तेरा अहसास

जब तू मेरे साथ खड़ा था,
तो तेरा अहसास नहीं था
आज तू मेरे पास नहीं
तो तेरी याद आती है
अभी तुझे सोचा तो याद न आयी
जब तू चला गया तो ये आंख भर आयी
रह रह कर वो बातें याद आती है
तेरी कही हर बात जुबा पर चली आती है
ना जाने क्या हुआ है मुझको आजकल
वो तेरी हर लगन खोजता हु
जिसमे बसी वो सांसे
वो धड़कन खोजता हु