Friday, October 4, 2013

शायद: मीलो चलते चलते कुछ थम सा गया हु

शायद: मीलो चलते चलते कुछ थम सा गया हु: मीलो चलते चलते कुछ थम सा गया हु , मंजिल का ठिकाना ढूढते - दूदते कही दूर सा निकल चला हु / कितना खुद को प्रदर्शित करू कितना खुद साबित कर...

मीलो चलते चलते कुछ थम सा गया हु

मीलो चलते चलते कुछ थम सा गया हु ,
मंजिल का ठिकाना ढूढते - दूदते
कही दूर सा निकल चला हु /

कितना खुद को प्रदर्शित करू
कितना खुद साबित करू
कितने राहो को समेट लू
कितनी बातों में खुद से जूडू
कल में  कुछ अहसास था
सानिध्य का आभास भी था
समझोतों ने विश्वास दिया था
दिशायो में भरोसा किया था
लगता है इन् बर्फ के चटानो से जम सा गया हु
मीलो चलते चलते कुछ थम सा गया हु ,

मुझे इसका अहसास नहीं कि
उनकी प्रवित्तिया गलत थी,
या मेरा दृष्टिकोण गलत था
समीप में होते हुए
उनका सन्निकर्ष गलत था /
जो कुछ भी हो पर
मेरा ना प्यार गलत था
न उसका प्रादुर्भाव गलत था

"शायद "इस विपरण की दुकानदारी से थक सा गया हु
मीलो चलते चलते कुछ थम सा गया हु /

Thursday, September 12, 2013

हम सब यु मिल बैठेगे एक साथ, इसका विश्वास न था

समझोते की आग कुछ यु सुलग उठेगी
कर्णपल्लव  को ये आस न था
हम सब यु मिल बैठेगे एक साथ
इसका विश्वास न था ,

जमीन से जुड़ने का कुछ तो
अर्श  मिल गया
हम कल रहे या ना रहे
इसका अर्थ मिल गया /
नाम कुछ भी हो उसका
एक ठिकाना सा मिल गया
न चाहते हुए भी
एक याराना मिला गया

कही कुछ आहट  सी हुई
कही कुछ स्थिति विकट सी हुई
कुछ का अपनापन था
कुछ का समझोता भर था
कुछ अपने दुःख से थे व्यथित
कुछ अपने साथ से थे ग्रसित
लेकिन एक चाहत साथ थी आयी
ये रात बार बार क्यों ना आयी
"शायद " इसका किसी को आभास  न था ,
हम सब यु मिल बैठेंगे इसका
विश्वास न था /// 

Tuesday, September 10, 2013

रिश्तो की डोर कुछ इस तरह टूटने सी लगेगी, अहसास न था

रिश्तो की डोर कुछ इस तरह टूटने सी लगेगी 
अहसास न था ,
मंजिले तक पहुचने में ऐसी राह जो चुनी 
उसका आभास न था / 

कितने दिग्भ्रमित पड़ाव से मिले 
कितने अजनबियों के सुझाव थे मिले 
कितने आप - बीती सी कर्णिकाओ में बजे 
कितने ही सुनहरे भविष्य के सृंगार थे सजे 

आज समय के इस चक्र के घूमने का 
विश्वास न था ,
"शायद " उपरोक्त उद्धरण के समझोते के कारण 
उस पर पश्चाताप न था 
रिश्तो की डोर कुछ इस तरह टूटने सी लगेगी 
अहसास न था / 

Friday, August 30, 2013

मैं खुद को बड़ी मुस्किल से मिल पाया था, लेकिन परछाई ने अनजान कर दिया

   

                                                                 
उसकी एक याद ने मुझे हैरान कर दिया  
ज़िन्दगी को  कुछ यु आसान  कर दिया ,  
मैं खुद को बड़ी मुस्किल से मिल पाया था
लेकिन परछाई ने अनजान कर दिया /

उसकी एक झलक जब जब हृदय में समाती है
पल पल जब वो आखों से ओझल हो जाती है
स्वप्नों की मरीचिका पलकों में विचरण सी कर जाती है
भोर की किरणों में जब वो गुनगुनाती है
सूरज की अंगड़ाई में जब वो गीत सुनाती है
गोधुली के बेला जब उससे अंचल में ले जाती है

टूटते हुए स्वप्न ने कुछ ऐसा परिवर्तन सा कर दिया ,
हम उससे अलग हुए और वो ह्रदय को बेआस कर दिया /
उसकी एक याद ने मुझे हैरान कर दिया  
ज़िन्दगी को  कुछ यु आसान  कर दिया ,  
मैं खुद को बड़ी मुस्किल से मिल पाया था/
लेकिन परछाई ने अनजान कर दिया /