Sunday, August 3, 2014

रोज इन् शामों को अक्सर जिया करते थे , कभी साथ तो कभी जुदा रहा करते थे !!!!!!!!!!

रोज इन् शामों को अक्सर जिया करते थे
कभी साथ तो कभी जुदा रहा करते थे
छत के उन झरोखे से आँखे मिलना न था
एग्जाम में पढ़ने के बहाने छत पर टहलना भी था
न जाने कितने ही रातों को ख्वाबो से पिरोया था
न जाने कितने ही बातों को दिल में संजोया था
हर उस पार की कड़ी पर निगाहे जमी रहती थी
उस ओर दिन एक बार देखने की होड़ सी लगी रहती थी
हम अपने खुद को महिवाल और राँझा समझा करते थे
रोज इन् शामों को अक्सर जिया करते थे
कभी साथ तो कभी जुदा रहा करते थे /
याद है हर वो मौसम जब छत पर जाया करते थे
किसी न किसी काम से नज़रों की छाया बनते थे
कभी किसी रोज कुछ बातों में हसना
कुछ बातों में रूठना और कल पर छोड़ना
समझोते की दुनिया बहुत करीब से देखने लगे थे
रोज इन् शामों को अक्सर जिया करते थे
कभी साथ तो कभी जुदा रहा करते थे /
आज वो बहुत दूर सी हो गयी है
ज़िन्दगी अब किसी और डोर से जुड़ गयी
यादें आज भी अपने सम्पन्नता छोड़ गयी है
रह रह कर उनके साथ जिया हर एक पल याद आने लगी है
उसे बचपना कहे या एक आकर्षण
उनके बातों को सजावट कहे या संकलन
"शायद" कुछ छूट सा रहा है
जो उस समय मंजर हुआ करते थे
रोज इन् शामों को अक्सर जिया करते थे
कभी साथ तो कभी जुदा रहा करते थे /

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