Sunday, November 21, 2010

ना जाने फिर कब वो बात होगी

आज अचानक कुछ बात हुई
उससे कहने की शुरुआत हुई
रहा ना गया दिल से
बोलने चल ही दिया
अपने जख्मो को उससे छिपाया भी ना गया
और उसे कुछ बताया भी ना गया
डुढता रहा शब्दो के सृन्खालाओं को
जो प्रगट करना था
आवाज़ देता रहा मन को
जिसे भावनाओ को भरना था
लेकिन कोई साथ ना दिया
आज दिल, मन, आवाज़ अजनबी से लग रहे थे
डुढते-डुढते उन् आवाजो को आंखे नम हो रही थी
मिलने की चाहत अब बेरूख हो रही थी
आज फिर वही रही गया
अपने दिल को बोलता हुआ
अपनी आवाज़ डुढता हुआ
ना जाने फिर कब वो बात होगी
और पुनह कहने की शुरुआत होगी

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