Sunday, January 16, 2011

एक राह को दुसरे से जोड़ता सा रहा


राह भटकने का इंतजार करता रहा

एक राह को दुसरे से जोड़ता सा रहा

हर चाह को, समझोते में सजोंता रहा

समय की हर पुकार को मिटाता ही रहा

न जाने अब कौन से मोड़ पर आ गया

चौराहे से आगे नाता जो तोड़ता रहा

हर राह पर आँखों को संभावनाओ से जोड़ता रहा

सड़क के दोनों तरफ था पेड़ो का दरख्त

उन् पेड़ो के दरख्तों से मुह मोड़ता सा रहा

एक राह को दुसरे से जोड़ता सा रहा !!

भीड़ मिलती गयी

हम बिछड़ते गए

वो आगे बड़ते रहे

हम उन्हें ढूढ़ते रहे

न जाने कितने पल और बढ़ता रहा

"शायद" उन पलो को मैं गिनता सा रहा !!!!