Friday, December 30, 2011

बीत जाने वाले पल याद आने लगे है


                                                        आज इस जाते हुए वर्ष को देखकर 
बीत जाने वाले पल याद आने लगे है 
दिल्ली ऑफिस के वो पुराने दिन 
दिनों की मेहनत, लोंगो की चुगली 
घंटो ट्रैफिक और बस में बातें 
वो काला, वो लम्बू, 
वो मोटी,
सब के उपनाम अब हँसाने लगे है 
बीत जाने वाले पल 
याद आने लगे है 
हम चारो में शर्त का लगाना 
पहले कंपनी छोड़ने पर 
इकठे हुए पैसे और गिफ्ट देना 
अचानक रिजाइन का खयाला आया 
रिजाइन करते ही पैसे और गिफ्ट पर 
अपना अधिकार जताया, 
लेकिन उससे पहले ही एक दोस्त 
मुझसे बतलाया ,
भाई तेरे से पहले मैंने ही 
ये गेम खेल के आया , 
पैसे के साथ नौकरी भी गयी 
ये सुनकर सभी दोस्त हसने लगे 
बीत जाने पल अब 
याद आने लगे है / 

आज कंपनी छुट चुकी है 
दिल्ली की साँसे इस दिल में 
धड़कना भूल चुकी है 
हर रोज सुबह उस बस की 
याद आती है 
छुटने के डर से जब रात भर 
जब नींद नहीं आती थी 
सोचता रह जाता हु 
लेट sitting की आदत 
आते हुए साल में दिखने से लगे है 
बीते हुए पल अब 
याद आने से लगे है / 

Sunday, October 23, 2011

चलते हुए राही है हम विश्राम नहीं करते //



हवा के रुख का हम 
अब  इंतजार नहीं करते 
भौन में रहते हुए भी हम 
अनजान है रहते 
कोशिश कितना भी 
कर ले ये हवाए  
चलते  हुए राही है हम 
विश्राम नहीं करते //

Wednesday, September 14, 2011

कही राह पर रुक, मेरा इंतज़ार न कर



मैं कोई आस नहीं 
तेरा विश्वास नहीं 
ज़िन्दगी के साथ बढ़ते 
उस भीड़ के साथ नहीं 
कही राह पर रुक 
मेरा इंतज़ार न कर 
मैं तो एक ख्वाब हु 
इस ख्वाब से तू प्यार न कर /

वो दिन अब है ढल चुके 
कल बने रिश्ते छूट चुके 
समझौता के हर पहलु 
बीते दिन के बात हुए 
कुछ अनिच्छा , 
इच्छा का आभार न कर 
मैं तो एक ख्वाव हु 
इस ख्वाब से तू प्यार न कर //

Saturday, August 6, 2011

शायद ये तुम्हे "ना' याद हो !!!!!!!!!!!!!!!!



शायद तुम्हे याद हो


किसी राह पर हम यु ही मिल गए

आप की पहचान का

अहसास न था

आप पर हमको विश्वास न था

शायद तुम्हे याद हो

दिन रह रह कर घटते से गए

हम यु ही रोज मिलते ही गए

शायद तुम्हे याद हो

साथ दोपहर के भोजन पर

का विवरण करना

लोंगो के बातों पर अपना

निष्कर्ष बताना

शायद तुम्हे याद हो

किसी की बात को

किसी से जोड़ना

रह रह कर कितने ही

रिश्तों को तोडना

हर पहलु को

अपने ही ओर मोड़ना

शायद तुम्हे याद हो

दिन बढ़ने सा लगा

यात्रा अंतिम की ओर बढ़ने सा लगा

परिवर्तन की बातों पर

चर्चा होने सा लगा

शायद तुम्हे याद हो

पुनः उसी राह पर हम पहुच गए

जहा से शुरुआत हुई

पुनः आज अविश्वास और विश्वास की

बात सोचने लगा

आज छूट जाने के बाद प्रश्न का उत्तर

ढूढ़ने सा लगा

शायद ये तुम्हे "ना" याद हो



                    

Sunday, July 10, 2011

मन कुछ ओझल सा हो जाता है


साँझ के वक़्त
आते हर उस पल
मन कुछ ओझल सा हो जाता है
जब जब तेरा चेहरा
उन् यादों में पाता है
उन् यादों को सम्हालना
बहुत ही मुस्किल सा हो जाता है
जब बहती हवाओ में
आपकी मधुर आवाज़ कानो
को दिग्भ्रमित कर
चारो ओर मंडराता है
मन मृग बन कस्तूरी की
आशा करता है
और चारो ओर निगाहे लगा
आप के पदचिन्हों को ढूढता है
न जाने कब ये आस मिटेगी
कानो को सुनने को वो आवाज़ मिलेगी
न देखा अब तक जिस चेहरे को
उसकी परछाई का आभास मिलेगी

Saturday, March 19, 2011

अब लौटना मुश्किल है


अब लौटना मुश्किल है
अपनी कही बात से मुह मोड़ता रहा
उसे समझाने में खुद को तोड़ता रहा
उसके जाने की खबर सी फ़ैल गयी
न जाने कब की बात छूट गयी
मन कहता है अब लौटना मुश्किल है
दूर कही जब दृश्यता था
वहा की राह देखता था
हर राह में कुछ हमराही मिले
साथ चले और बिछड़ गए
आगे चले हमराही
वो पीछे ही पिछड़ गए
उससे उनकी बात कहनी रह गयी
उनसे मिलने को वो चाह रह गयी
वो कहता है, अब लौटना मुश्किल है

Tuesday, March 1, 2011

परिवर्तन की बातों पर, सोचने सा लगा हु ,


ना जाने क्या हो रहा है आज कल
खोने सा लगा हु ,
परिवर्तन की बातों पर
सोचने सा लगा हु ,
कुछ दिशाओ की राह
आसान सी न रह गयी
कुछ हवाओ का रुख से
बेमुख सा होने लगा हु
न जाने क्या हो रहा है आज कल
खोने सा लगा हु
कुछ कुछ पल करते
कुछ साल बीत गए
आज कल के संशय में
कुछ साथ छुट गए
न जाने कब वो बयार बहेगी
अब ये मांगने सा लगा हु
परिवर्तन की बातों पर
सोचने सा लगा हु !!!!!

Sunday, January 16, 2011

एक राह को दुसरे से जोड़ता सा रहा


राह भटकने का इंतजार करता रहा

एक राह को दुसरे से जोड़ता सा रहा

हर चाह को, समझोते में सजोंता रहा

समय की हर पुकार को मिटाता ही रहा

न जाने अब कौन से मोड़ पर आ गया

चौराहे से आगे नाता जो तोड़ता रहा

हर राह पर आँखों को संभावनाओ से जोड़ता रहा

सड़क के दोनों तरफ था पेड़ो का दरख्त

उन् पेड़ो के दरख्तों से मुह मोड़ता सा रहा

एक राह को दुसरे से जोड़ता सा रहा !!

भीड़ मिलती गयी

हम बिछड़ते गए

वो आगे बड़ते रहे

हम उन्हें ढूढ़ते रहे

न जाने कितने पल और बढ़ता रहा

"शायद" उन पलो को मैं गिनता सा रहा !!!!