Tuesday, December 28, 2010

उस प्रश्न के मरण का, अभिशाप अपने सर लेते रहा


उनके अहसानों से बेखबर सा रहा
बदलते हुए चेहरे का गम अब दिख सा रहा
बहुत कुछ देखता रहा उम्र भर
उसका नाम अभी भी ढूढता सा रहा
समाप्त हो चुके कितने पन्नो पर,
वह प्रश्न पूछता ही रहा
जवाब मिले या न मिले, उस प्रश्न के मरण का
अभिशाप अपने सर लेते रहा
कितनी दूरिया- कितने लोग, कुछ अजनबी - कुछ सम्भोर
कितनी बातें -कितनी कहावतें, कुछ अनजानी - कुछ सगोर
चलते फिरते कुछ अच्छे दिन ढूढता रहा
"शायद" उन् दिनों में खुद को खोता रहा
उनके अहसानों से बेखबर सा रहा
बदलते हुए चेहरे का गम अब दिख सा रहा

Monday, December 27, 2010

पूछते रहे वो हर पल जोड़कर , कहता गया मैं भी दिल तोड़ कर


आज का दिन कुछ खास रहा

मुझ पर उनका विश्वास रहा

पूछते रहे वो हर पल जोड़कर

कहता गया मैं भी दिल तोड़ कर

कुछ कह दिया

कुछ कहना रह गया

कुछ बातों में उन्हें भ्रम रहा

कुछ का अहसास हुआ

पिछली कुछ बातें जब याद दिलाई

सहसा उन्हें उस पर विश्वास न हुआ

उनकी इस अविश्वसिनायता

मेरे पैर डगमगा से गए

और मैं अपने राह से लगा भटका हुआ

मैंने फिर हिम्मत किया

कह दिया सब बंदिसे तोड़कर

पूछते रहे वो हर पल जोड़कर

कहता गया मैं भी दिल तोड़ कर !!!!!!!!!!!

Thursday, December 23, 2010

कुछ बीती हुई बातों पर खो सा गया !!!!


न जाने आज क्या हो गया

कुछ बीती हुई बातों पर खो सा गया

दोस्तों के साथ बैठना ही ना था,

लम्बी लम्बी बातों का सन्दर्भ भी ढूढ़ना था

अपनी बातों के लिए कर-जोड़ करना था

उनकी बातों को नया पहलु भी ढूढ़ना था

कुछ पुराने की सुनना

कुछ अपनी कहना

अपनी बातों को उनसे ही कहलाना

अब याद सी आने लगी है

छात्रावास के सामने गेट पर शाम को बैठना

रात में कल्लू की चाय की दुकान पर

उसकी समीक्षा करना

उन अनउत्तरित बातों में समय बीताना

वो रातें अब आलस में बदल गया

अब रात में कुछ पल की नीद और

समय ऑफिस में रह गया !!!!!

अहसासों की उडान


ना जाने कब अहसासों को पंख लग गए

और कहा की अब सबके साथ उड़ना है

उसने कहा

मानता हु की ज़िन्दगी की डगर

है मुश्किल मगर

राह से हटना भी तो एक डर है

राह से हट भी जाऊ किसी के लिए

क्या भरोसा की वो अपना हमसफ़र हो

ढूढता रहा राह भर

सांसे रोककर

कोई तो हो जो इन् उड़ाते पंखो को

निहार सके

और अपना माने

लेकिन लोग मिलते गए , चलते गए

वो देखता रहा आंखे भर-भर कर

भागना चाहा वह अपने से डरकर

विश्वास ना ला पाया खुद पर

अंततः वो टूटने सा लगा

छुप गया वो भागकर

कहा की ना जाने क्यों

बदलने से लगे है लोग

उसके पंख टूटने से लग गए

कहा की अब नहीं है वो पहचान

कम सी होने लगी उडान .