Sunday, August 3, 2014

रोज इन् शामों को अक्सर जिया करते थे , कभी साथ तो कभी जुदा रहा करते थे !!!!!!!!!!

रोज इन् शामों को अक्सर जिया करते थे
कभी साथ तो कभी जुदा रहा करते थे
छत के उन झरोखे से आँखे मिलना न था
एग्जाम में पढ़ने के बहाने छत पर टहलना भी था
न जाने कितने ही रातों को ख्वाबो से पिरोया था
न जाने कितने ही बातों को दिल में संजोया था
हर उस पार की कड़ी पर निगाहे जमी रहती थी
उस ओर दिन एक बार देखने की होड़ सी लगी रहती थी
हम अपने खुद को महिवाल और राँझा समझा करते थे
रोज इन् शामों को अक्सर जिया करते थे
कभी साथ तो कभी जुदा रहा करते थे /
याद है हर वो मौसम जब छत पर जाया करते थे
किसी न किसी काम से नज़रों की छाया बनते थे
कभी किसी रोज कुछ बातों में हसना
कुछ बातों में रूठना और कल पर छोड़ना
समझोते की दुनिया बहुत करीब से देखने लगे थे
रोज इन् शामों को अक्सर जिया करते थे
कभी साथ तो कभी जुदा रहा करते थे /
आज वो बहुत दूर सी हो गयी है
ज़िन्दगी अब किसी और डोर से जुड़ गयी
यादें आज भी अपने सम्पन्नता छोड़ गयी है
रह रह कर उनके साथ जिया हर एक पल याद आने लगी है
उसे बचपना कहे या एक आकर्षण
उनके बातों को सजावट कहे या संकलन
"शायद" कुछ छूट सा रहा है
जो उस समय मंजर हुआ करते थे
रोज इन् शामों को अक्सर जिया करते थे
कभी साथ तो कभी जुदा रहा करते थे /

Friday, October 4, 2013

शायद: मीलो चलते चलते कुछ थम सा गया हु

शायद: मीलो चलते चलते कुछ थम सा गया हु: मीलो चलते चलते कुछ थम सा गया हु , मंजिल का ठिकाना ढूढते - दूदते कही दूर सा निकल चला हु / कितना खुद को प्रदर्शित करू कितना खुद साबित कर...

मीलो चलते चलते कुछ थम सा गया हु

मीलो चलते चलते कुछ थम सा गया हु ,
मंजिल का ठिकाना ढूढते - दूदते
कही दूर सा निकल चला हु /

कितना खुद को प्रदर्शित करू
कितना खुद साबित करू
कितने राहो को समेट लू
कितनी बातों में खुद से जूडू
कल में  कुछ अहसास था
सानिध्य का आभास भी था
समझोतों ने विश्वास दिया था
दिशायो में भरोसा किया था
लगता है इन् बर्फ के चटानो से जम सा गया हु
मीलो चलते चलते कुछ थम सा गया हु ,

मुझे इसका अहसास नहीं कि
उनकी प्रवित्तिया गलत थी,
या मेरा दृष्टिकोण गलत था
समीप में होते हुए
उनका सन्निकर्ष गलत था /
जो कुछ भी हो पर
मेरा ना प्यार गलत था
न उसका प्रादुर्भाव गलत था

"शायद "इस विपरण की दुकानदारी से थक सा गया हु
मीलो चलते चलते कुछ थम सा गया हु /

Thursday, September 12, 2013

हम सब यु मिल बैठेगे एक साथ, इसका विश्वास न था

समझोते की आग कुछ यु सुलग उठेगी
कर्णपल्लव  को ये आस न था
हम सब यु मिल बैठेगे एक साथ
इसका विश्वास न था ,

जमीन से जुड़ने का कुछ तो
अर्श  मिल गया
हम कल रहे या ना रहे
इसका अर्थ मिल गया /
नाम कुछ भी हो उसका
एक ठिकाना सा मिल गया
न चाहते हुए भी
एक याराना मिला गया

कही कुछ आहट  सी हुई
कही कुछ स्थिति विकट सी हुई
कुछ का अपनापन था
कुछ का समझोता भर था
कुछ अपने दुःख से थे व्यथित
कुछ अपने साथ से थे ग्रसित
लेकिन एक चाहत साथ थी आयी
ये रात बार बार क्यों ना आयी
"शायद " इसका किसी को आभास  न था ,
हम सब यु मिल बैठेंगे इसका
विश्वास न था /// 

Tuesday, September 10, 2013

रिश्तो की डोर कुछ इस तरह टूटने सी लगेगी, अहसास न था

रिश्तो की डोर कुछ इस तरह टूटने सी लगेगी 
अहसास न था ,
मंजिले तक पहुचने में ऐसी राह जो चुनी 
उसका आभास न था / 

कितने दिग्भ्रमित पड़ाव से मिले 
कितने अजनबियों के सुझाव थे मिले 
कितने आप - बीती सी कर्णिकाओ में बजे 
कितने ही सुनहरे भविष्य के सृंगार थे सजे 

आज समय के इस चक्र के घूमने का 
विश्वास न था ,
"शायद " उपरोक्त उद्धरण के समझोते के कारण 
उस पर पश्चाताप न था 
रिश्तो की डोर कुछ इस तरह टूटने सी लगेगी 
अहसास न था / 

Friday, August 30, 2013

मैं खुद को बड़ी मुस्किल से मिल पाया था, लेकिन परछाई ने अनजान कर दिया

   

                                                                 
उसकी एक याद ने मुझे हैरान कर दिया  
ज़िन्दगी को  कुछ यु आसान  कर दिया ,  
मैं खुद को बड़ी मुस्किल से मिल पाया था
लेकिन परछाई ने अनजान कर दिया /

उसकी एक झलक जब जब हृदय में समाती है
पल पल जब वो आखों से ओझल हो जाती है
स्वप्नों की मरीचिका पलकों में विचरण सी कर जाती है
भोर की किरणों में जब वो गुनगुनाती है
सूरज की अंगड़ाई में जब वो गीत सुनाती है
गोधुली के बेला जब उससे अंचल में ले जाती है

टूटते हुए स्वप्न ने कुछ ऐसा परिवर्तन सा कर दिया ,
हम उससे अलग हुए और वो ह्रदय को बेआस कर दिया /
उसकी एक याद ने मुझे हैरान कर दिया  
ज़िन्दगी को  कुछ यु आसान  कर दिया ,  
मैं खुद को बड़ी मुस्किल से मिल पाया था/
लेकिन परछाई ने अनजान कर दिया /

Tuesday, January 10, 2012

कुछ पत्ते बिखरने से लगे है












कुछ देखे हुए सपने अब टूटने से लगे है 
डाली के कुछ पत्ते बिखरने से लगे है 
साथ देते वो मगर 
हवाओ को वो 
पहचान न सके 
इन् हवाओ के रुख का आभास 
कर न सके 
बाहर के हरियाली को 
अशिआना समझने  लगे है 
कुछ देखे हुए सपने अब टूटने से लगे है 
डाली के कुछ पत्ते बिखरने से लगे है 

आवाज़ की पहचान 
भूल से गए 
समझौतों को वो ना दूर 
तक ले गए 
धीरे धीरे उनकी चाहत अब 
बढ़ने से लगे है 
कुछ देखे हुए सपने अब टूटने से लगे है 
डाली के कुछ पत्ते बिखरने से लगे है 

उन्हें नहीं पता टूटने का दर्द
अब तक समझ ना पाए 
बिखरने का दर्द
उनको अब टूटना ही होगा 
हरियाली में अशिआना 
ढूढना ही होगा 
धीरे धीरे ही सही 
"शायद " वो रिश्ते समझने लगे है 
कुछ देखे हुए सपने अब टूटने से लगे है 
डाली के कुछ पत्ते बिखरने से लगे है 

Friday, December 30, 2011

बीत जाने वाले पल याद आने लगे है


                                                        आज इस जाते हुए वर्ष को देखकर 
बीत जाने वाले पल याद आने लगे है 
दिल्ली ऑफिस के वो पुराने दिन 
दिनों की मेहनत, लोंगो की चुगली 
घंटो ट्रैफिक और बस में बातें 
वो काला, वो लम्बू, 
वो मोटी,
सब के उपनाम अब हँसाने लगे है 
बीत जाने वाले पल 
याद आने लगे है 
हम चारो में शर्त का लगाना 
पहले कंपनी छोड़ने पर 
इकठे हुए पैसे और गिफ्ट देना 
अचानक रिजाइन का खयाला आया 
रिजाइन करते ही पैसे और गिफ्ट पर 
अपना अधिकार जताया, 
लेकिन उससे पहले ही एक दोस्त 
मुझसे बतलाया ,
भाई तेरे से पहले मैंने ही 
ये गेम खेल के आया , 
पैसे के साथ नौकरी भी गयी 
ये सुनकर सभी दोस्त हसने लगे 
बीत जाने पल अब 
याद आने लगे है / 

आज कंपनी छुट चुकी है 
दिल्ली की साँसे इस दिल में 
धड़कना भूल चुकी है 
हर रोज सुबह उस बस की 
याद आती है 
छुटने के डर से जब रात भर 
जब नींद नहीं आती थी 
सोचता रह जाता हु 
लेट sitting की आदत 
आते हुए साल में दिखने से लगे है 
बीते हुए पल अब 
याद आने से लगे है /