Wednesday, September 14, 2011

कही राह पर रुक, मेरा इंतज़ार न कर



मैं कोई आस नहीं 
तेरा विश्वास नहीं 
ज़िन्दगी के साथ बढ़ते 
उस भीड़ के साथ नहीं 
कही राह पर रुक 
मेरा इंतज़ार न कर 
मैं तो एक ख्वाब हु 
इस ख्वाब से तू प्यार न कर /

वो दिन अब है ढल चुके 
कल बने रिश्ते छूट चुके 
समझौता के हर पहलु 
बीते दिन के बात हुए 
कुछ अनिच्छा , 
इच्छा का आभार न कर 
मैं तो एक ख्वाव हु 
इस ख्वाब से तू प्यार न कर //

5 comments:

  1. कल 28/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  2. कुछ अनिच्छा ,
    इच्छा का आभार न कर
    मैं तो एक ख्वाव हु
    इस ख्वाब से तू प्यार न कर //

    बहुत खूब

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  3. बहुत ही बढि़या ।

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  4. बढ़िया रचना...
    शुभकामनाएं....

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