Thursday, September 2, 2010

आज "शायद " फ़िर वही खयाल आता रहा बार बार
सजती रही दुकाने
लगते रहे है बाजार
फ़िर वही आवाज पुकारता रहा है मन
फिर वही चेहरा सँवारता रहा है तन
मन ही है मन का भार
यही है ज़ीवन ज़ीने का सार
...अफसोंसो की रहती हमेशा भरमार
परम्पराओं में अवरोध बनकर न करो प्रतिकार
यहाँ रोज़ सजती है दुकानें
रोज लगता हैं बाजार

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