Friday, October 4, 2013

मीलो चलते चलते कुछ थम सा गया हु

मीलो चलते चलते कुछ थम सा गया हु ,
मंजिल का ठिकाना ढूढते - दूदते
कही दूर सा निकल चला हु /

कितना खुद को प्रदर्शित करू
कितना खुद साबित करू
कितने राहो को समेट लू
कितनी बातों में खुद से जूडू
कल में  कुछ अहसास था
सानिध्य का आभास भी था
समझोतों ने विश्वास दिया था
दिशायो में भरोसा किया था
लगता है इन् बर्फ के चटानो से जम सा गया हु
मीलो चलते चलते कुछ थम सा गया हु ,

मुझे इसका अहसास नहीं कि
उनकी प्रवित्तिया गलत थी,
या मेरा दृष्टिकोण गलत था
समीप में होते हुए
उनका सन्निकर्ष गलत था /
जो कुछ भी हो पर
मेरा ना प्यार गलत था
न उसका प्रादुर्भाव गलत था

"शायद "इस विपरण की दुकानदारी से थक सा गया हु
मीलो चलते चलते कुछ थम सा गया हु /

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