न जाने आज क्या हो गया
कुछ बीती हुई बातों पर खो सा गया
दोस्तों के साथ बैठना ही ना था,
लम्बी लम्बी बातों का सन्दर्भ भी ढूढ़ना था
अपनी बातों के लिए कर-जोड़ करना था
उनकी बातों को नया पहलु भी ढूढ़ना था
कुछ पुराने की सुनना
कुछ अपनी कहना
अपनी बातों को उनसे ही कहलाना
अब याद सी आने लगी है
छात्रावास के सामने गेट पर शाम को बैठना
रात में कल्लू की चाय की दुकान पर
उसकी समीक्षा करना
उन अनउत्तरित बातों में समय बीताना
वो रातें अब आलस में बदल गया
अब रात में कुछ पल की नीद और
समय ऑफिस में रह गया !!!!!
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